घर में सामूहिक चुदाई

हाय दोस्तो। मैं मोनू. एक बार फिर से आपके लिए हिंदी सेक्सी स्टोरी लाया हूँ। जिसमें मेरे एक मित्र रमेश नें अपनी सौतेली माँ और नानी की गाँव में चुदाई की। मैंनें नीचे उसकी कहानी का वर्णन उसी के शब्दों में किया है. Maa ki Samuhik Chudai मैं रमेश 19 साल का तंदरुस्त जवान हूँ. हम लोग उत्तर प्रदेश के एक गाँव में रहते हैं।

जब मैं 12 साल का था तभी मेरी माँ का देहान्त हो गया और पिताजी नें 22 साल की एक गरीब लड़की से दूसरी शादी कर ली। हम लोग खेती-बाड़ी करके अपना दिन गुजारते थे।

मेरे ज्यादा पढ़ा लिखा न होनें की वजह से पिताजी नें एक छोटी सी किरानें की दुकान खोल ली। पिताजी खेती पर जाते थे और मैं या मेरी सौतेली माँ दुकान पर बैठते थे। जब मैं 19 साल का हुआ तो पिताजी का अचानक देहान्त हो गया। अब घर में केवल मैं और मेरी सौतेली माँ रहते थे। मेरी सौतेली माँ को मैं माँ कहकर बुलाता था। घर का इकलौता बेटा होनें के कारण मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी।

मेरी माँ थोड़ी मोटी और सावली हैं. और उनकी उम्र 30 साल की है। उसके चूतड़ काफी मोटे हैं. जब वो चलती है तो उसके चूतड़ हिलते हैं। उसके बूब्स भी बड़े-बड़े हैं। मैंनें कई बार नहाते समय उनके बूब्स देखे हैं।

पिताजी के देहान्त के बाद हम माँ बेटे ही घर में रहते थे और अकेलापन महसूस करते थे। दुकान में रहनें के कारण हम लोग खेती नहीं कर पाते थे इसलिए खेत को हमनें किसी और को जुताई के लिए दे दिया था। मैं सुबह सात बजे से दोपहर साढ़े बारह बजे तक दुकान में बैठता था और तीन बजे तक घर में रहता था। फिर दुकान खोलकर सात बजे तक दुकान बंद कर घर चला जाता था।

जब मुझे दुकान का माल खरीदनें शहर जाना पड़ता तो माँ दुकान पर बैठती थी।

एक दिन माँ नें दोपहर में खाना खाते वक़्त मुझसे पूछा- रमेश बेटे। अगर तुम्हे ऐतराज न हो तो. क्या मैं अपनी माँ को यहाँ बुला लूँ. क्योंकि वो भी गाँव में अकेली रहती है। उनके यहाँ आनें से हमारा अकेलापन दूर हो जाएगा।

मैंनें कहा- कोई बात नहीं माँ। आप नानी जी को यहाँ बुला लो।

अगले हफ्ते नानी जी हमारे घर पहुँच गईं। वो करीब 45 साल की थी और उनके पति का देहान्त 3 साल पहले हुआ था। नानी भी मोटी और सांवली थी और उनका बदन काफी सेक्सी था।

जाड़े का समय था. इसलिए सुबह दुकान देर से खुलती थी और शाम को जल्दी ही बंद भी कर देता था।

घर पर माँ और नानी दोनों साड़ी और ब्लाउज पहनती थीं और रात को सोते समय साड़ी खोल देती थी और केवल ब्लाउज और पेटीकोट पहन कर सोती थी।

मैं सोते समय केवल अंडरवियर और लुंगी पहन कर सोता था।

एक दिन सुबह मेरी आँख खुली तो. देखा नानी मेरे कमरे में थी और मेरी लुंगी की तरफ आँखें फाड़-फाड़ कर देख रही थी।

मैंनें झट से आँखे बंद कर ली ताकि वो समझे कि मैं अभी तक सो रहा हूँ।

मैंनें महसूस किया कि मेरा लंड खड़ा होकर अंडरवियर से बाहर निकला था और लुंगी थोड़ी सरकी हुई थी इसलिए मेरा लंड जो 8 इंच लम्बा और काफी मोटा था. नानी उसे आखें फाड़-फाड़ कर देख रही थी।

कुछ देर इसी तरह देखनें के बाद वो कमरे से बाहर चली गई। तब मैंनें उठ कर मेरा मोटा लंड अंडरवियर के अन्दर किया और लुंगी ठीक करके मूतनें चला गया।

नहा धोकर जब हम सब मिलकर नाश्ता कर रहे थे. नानी बार-बार मेरे लंड की तरफ देख रही थी। शायद वो इस ताक में थी कि उसे मेरे लंड के दर्शन हो जायें।

जाड़े के दिनों में हम दुकान देर से खोलते थे इसलिए मैं बाहर आकर खेत पर बैठकर धूप का आनंद ले रहा था।

बाहर एक छोटा पार्टीशन था जिसमें हम लोग पेशाब वगैरह करते थे।

थोड़ी देर बाद मैंनें देखा कि नानी आई और पेशाब करनें चली गई। वो पार्टीशन में जाकर अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक ऊंची की और इस तरह बैठी की नानी की काली फांकों वाली. झांटों से घिरी चूत मुझे साफ दिखाई दे रही थी।

नानी का सर नीचे था और मेरी नजर उनकी चूत पर थी। पेशाब करनें के बाद नानी करीब पांच मिनट उसी तरह बैठी रही और अपनें दाहिनें हाथ से चूत को रगड़ रही थी।

ये सब देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया और जब नानी उठी तो मैंनें नजर घुमा ली। मेरे पास से गुजरते हुए नानी नें पूछा- आज दुकान नहीं खोलनी है क्या?

मैंनें कहा- बस नानी जी. दस मिनट में जाकर दुकान खोलता हूँ।

और मैं दुकान खोलनें चला गया।

शाम को दुकान से जब घर आया तो नानी फिर से मेरे सामनें पेशाब करनें चली गई और सुबह की तरह पेशाब करके अपनी चूत रगड़ रही थी।

थोड़ी देर बाद मैं बाहर घूमनें निकल गया। जाते वक़्त माँ नें कहा। बेटा जल्दी आ जाना. जाड़े का समय है न। मैंनें कहा ठीक है माँ. और निकल गया।

रास्ते में. मेरे दिमाग में केवल नानी की चूत ही चूत घूम रही थी। मैं कभी-कभी एक पौवा देशी शराब पिया करता था। हालाँकि आदत नहीं थी। महीनें दो महीनें में एक आध बार पी लिया करता था।

आज मेरे दिमाग में केवल चूत ही चूत घूम रही थी इसलिए मैंनें देसी ठेके पे डेढ़ पौवा पी लिया और चुपचाप घर की ओर चल पड़ा। मेरे पीनें के बारे में मेरी माँ जानती थी। लेकिन कुछ बोलती नहीं थी क्योंकि मैं पी कर चुप चाप सो जाता था।

रात करीब नौ बजे हम सबनें साथ में खाना खाया। खाना खानें के बाद माँ घर के काम में लग गई और मैं और नानी खेत पर बैठकर बातें करनें लगे। थोड़ी ही देर में माँ भी आ गई और बातें करनें लगी।

नानी नें कहा- चलो। कमरे में चलते हैं. वहीं बातें करेंगे क्योंकि बाहर ठण्ड लग रही है।

इसलिए हम सब कमरे में आ गए। माँ नें अपना और नानी का बिस्तर जमीन पर लगाया और हम सब नीचे बैठकर बातें करनें लगे।

बातों-बातों में नानी नें कहा- रमेश। आज तू हमारे साथ ही सो जा।

माँ नें कहा- ये यहाँ कहाँ सोयेगा। और वैसे भी मुझे मर्दों के बीच सोनें में शर्म आती है और नींद भी नहीं आती है।

नानी बोली- बेटी क्या हुआ? ये भी तो तेरे बेटे जैसा ही है। हालाँकि तुम इसकी सौतेली माँ हो लेकिन इसका कितना ध्यान रखती हो। अगर बेटा साथ सो रहा है तो इसमें शर्म की क्या बात है।

खैर नानी की बात माँ मान गई। मैं माँ और नानी की बीच में सो गया। मेरी दाहिनी तरफ माँ सो रही थी और बाईं तरफ नानी।
शराब के नशे के कारण पता नहीं चला कि मुझे कब नींद आ गई।

करीब 1 बजे मुझे पेशाब लगी। मैंनें आँख खोली तो बगल से अआह उम्म्ह.. अहह.. हय.. याह.. की धीमी आवाज सुनाई दी। मैंनें महसूस किया कि ये तो माँ की फुसफुसाहट थी इसलिए मैंनें धीरे से माँ की ओर देखा।

माँ को देखकर मेरी आखें खुली की खुली रह गईं।