मुझे मिला दीपा को चोदने का मौका

बात उन दिनो की है जब मैं गयारहवीं कक्षा में पढ़ता था। हमारे पड़ोस में एक पंजाबी परिवार रहता था जिसमें सिरफ़ तीन ही सदस्य थे। एक 70 वर्षीय बुजुर्ग, एक लड़का और एक लड़की। लड़के की उमर लगभग 24-25 साल की रही होगी और लड़की की उम्र 20-21 साल की होगी। बुजुर्ग उन दोनों के पिता थे और अकसर बीमार से ही रहते थे। जबकि उन दोनों की माँ की मृत्यु हो चुकी थी। वैसे तो उस परिवार में 5-6 लड़कियाँ और भी थी लेकिन वो सब काफ़ी उमर की थी और सब की शादी हो चुकी थी और अपने पति के साथ अपनी ससुराल में ही रहती थी जो कि कभी-2 अपने पिताजी को देखने परिवार के साथ 2-3 दिन के लिये आती रहती थी। हमारा भी उस परिवार में काफ़ी आना जाना था।

लड़के का नाम राजेश और लड़की का नाम दीपाली था। दीपाली बहुत ही खूबसूरत थी। मैं राजेश को भाई साहब और दीपाली को जीजी कहता था। दीपाली का बदन मानो भगवान ने सांचे में ढाल कर बनाया हो। गोरा चिट्टा रंग हल्का गुलाबीपन लिये जैसे कि दूध में चु्टकी भर केसर डाल दी हो। शरीर 36-24-38। चूची एक दम सख्त और उभरी हुई और उसके चूतड़ भारी थे, लगता था कि उसके चूतड़ की जगह दो गोल बड़ी बड़ी गेंदें हो

वो अधिकतर सलवार कुरता पहनती थी और जब चलती थी तो ऐसा मालूम होता था कि दो गेंद आपस में रगड़ खा रही हो। जब वो हंसती थी तो गालो में बड़े प्यारे गढ्ढे पड़ते थे जिस से वो और भी खूबसूरत लगने लगती थी।

वोह बोलती बहुत थी और एक मिनट भी चुप नहीं बैठ सकती थी। उसमें एक खास बात थी कि वो किसी की भी चीज में कोई नुक्स नहीं निकालती थी चाहे उसको पसंद हो या ना हो।

वो हमेशा यही कहती थी कि बहुत ही प्यारी है। यदि उसको कुछ खाने के लिये दो और वो उसको पसंद नहीं आई हो पर वो तब भी उसकी तारीफ़ ही करती कि बहुत ही स्वादिष्ट बनी है।

इस बात की हम सब हमेशा ही दीपाली की तरीफ़ किया करते थे।

हमारी कालोनी के सभी लोग उसके दीवाने थे और एक बार बस उसको चोदना चाहते थे। मैं भी अकसर सोचता था कि काश मैं दीपाली को चोद सकूँ और एक दिन ऐसा मौका आ ही गया।

सितम्बर का महीना चल रहा था। उस दिन रविवार था और सबकी छुट्टी थी और समय रहा होगा लगभग 11 बजे सुबह का। मैं किसी काम से अपनी छत पर गया था।

हमारी दोनों की छत आपस में मिली हुई हैं और छत से उनके कमरे और बाथरूम बिलकुल साफ़ दिखाई देते हैं।

तो उस रोज जब मैं छत पर गया तो दीपाली के गाने की आवाज आ रही थी सो मैं वैसे ही उनके घर की तरफ़ देखने लगा तो मैं चौंक गया कयोंकि दीपाली बिलकुल नंगी बाथरूम में पटरे पर बैठी थी और टाँगें चौड़ी कर रखी थी।

सच दोस्तो ! मैं तो देखता ही रह गया। दीपाली की चूचियाँ एकदम गोरी और तनी हुई थी और जैसा कि मैं ख्यालों में सोचता था, उससे भी अधिक सुंदर थी। उसकी गोरी चूचियों के बीच में हल्के गुलाबी रंग के दो छोटे-2 घेरे थे और उनमें बिलकुल गुलाबी रंग के निप्पल थे जो कि बाहर को निकले थे। उसका सारा शरीर बहुत ही चिकना और गोरा था और टाँगों के बीच में तो पूछो ही मत। वहाँ उसकी चूत पर काले रेशमी बाल नज़र आ रहे थे और उनके बीच हल्की सी गुलाबी रंग की दरार नज़र आ रही थी। दरार में ऊपर की तरफ़ एक छोटा सा चने जैसा दना चमक रहा था। वो उस वक्त कपड़े धो रही थी और उसका सारा ध्यान उस तरफ़ ही था।

दीपाली को इस हालत में देख कर मेरा लण्ड एकदम से तन कर खड़ा हो गया मानो वो इस हसीन चूत को सलामी दे रहा हो। मन कर रहा था कि मैं फ़ोरन ही वहाँ पहुँच जाऊँ और दीपाली को कस कर चोद दूँ पर मैं ऐसा नहीं कर सका। मैं काफ़ी देर तक वहाँ खड़ा रहा और दीपाली को ऐसे ही देखता रहा और ऊपर से ही अपने लण्ड को पकड़ कर सहलाता रहा। मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी। मेरा गला एकदम से खुश्क हो गया था कि मैं थूक भी ठीक से नहीं निगल पा रहा था। मेरी टाँगें काम्प रही थी और ऐसा लग रहा था कि मेरी टाँगों में बिलकुल दम नहीं रहा और मैं गिर जाऊँगा।

मैं इस हालत में उसको करीब 15-20 मिनट तक देखता रहा। वो बार-2 सर झुका कर टाँगों में अपनी चूत की तरफ़ देख रही थी और एक कपड़े से चूत के बालों को रगड़ रही थी जिस से उसकी चूत के कुछ बाल उतर जाते थे। मैं समझ गया कि आज दीपाली अपनी चूत के बाल हेयर-रिमूवर से साफ़ कर रही है। मैं उसे बड़े ही गौर से देख रहा था कि अचनक उसकी नज़र मेरे ऊपर पड़ गई और उसने एकदम से बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया।

यह देख कर मैं बहुत डर गया और छत से नीचे उतर आया। मैं सारे दिन इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि अगर जीजी इस बारे में पूछेंगी तो मैं क्या जवाब दूंगा लेकिन कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मैंने सोचा कि मैं 2-3 दिन उसको दिखाई ही नहीं दूंगा और उसके बाद मामला कुछ शान्त हो ज़ायेगा और तभी देखा जयेगा कि क्या जवाब देना है।

मैं एक दिन तो दीपाली से बचा ही रहा और उसकी नज़रों के सामने ही नहीं अया।

अगले दिन पापा और मम्मी को किसी के यहाँ सुबह से शाम तक के लिये जाना था और ड्राइवर आया नहीं था तो पापा ने मुझको कहा कि मैं उनको कार से छोड़ आऊँ और शाम को वापस ले आऊँ।

मैं उनको कार से छोड़ने जा रहा था कि मैंने दीपाली को अपनी कार की तरफ़ तेजी के साथ आते हुए देखा तो डर के मारे मेरा हलक खुश्क हो गया। मम्मी पापा कार में बैठ ही चुके थे सो मैंने झट से कार आगे बढ़ा दी।

हालांकि मम्मी ने कहा भी कि दीपाली हमारी तरफ़ ही आ रही है कहीं कोई ज़रूरी काम ना हो, पर मैंने सुना अनसुना कर दिया और गाड़ी को तेजी के साथ ले गया।

मैंने मन ही मन सोचा कि जान बची तो लाखों पाये और लौट कर बुद्धू घर को आये।

जब मैं पापा मम्मी को छोड़ कर वापिस घर आया तो देखा कि वो हमारे गेट पर ही खड़ी है, जैसे ही मैंने कार रोकी, वो भाग कर कार के पास आ गई और मेरे से बोली कि कार को भगा कर ले जाने की कोशिश ना करना वरना बहुत ही बुरा होगा।

मैं बहुत बुरी तरह से डर गया और हकलाते हुये कहा- जीजी मैं कहाँ भागा जा रहा हूँ और मेरी इतनी हिम्मत ही कहाँ है कि जो मैं आप से भाग सकूँ?

इस पर दीपाली ने कहा- अभी जब तूने मुझे देखा था तब तो जल्दी से भाग गया था और अब बात बना रहा है।

मैंने कहा- जीजी, मुझ को कार को एक तरफ़ तो लगाने दो और फिर अंदर बैठ कर बात करते हैं।