शीला की जवानी- 8

जब ज्योति को इस ख़ास कंडोम की ख़ास बनावट समझ में आ गयी, तो उसने आगे से इसी कंडोम के साथ चुदाई का मन बना लिया।

आखिर बुराई भी क्या थी कंडोम चढ़ा कर चुदाई करवाने में अगर चूत में बढ़िया रगड़े लगती हों, और चुदाई का मजा दोगुना-तिगुना हो जाता हो।

आखिरकार दाल को देसी घी का तड़का और सब्ज़ी में भी मसाले इनको और ज्यादा स्वाद बनाने के लिए डाले जाते हैं, वर्ना पेट तो उबली हुई दाल सब्जी से भी भर जाता है।

ज्योति की बातें सुन-सुन कर मेरा लंड और भी सख्त हो चुका था। दारू का पटियाला पेग भी खत्म होने वाला था। कंडोम तो लंड पर चढ़ा ही हुआ था।

ज्योति खड़ा लंड देखा तो बोली,”चल जीते अंदर चलते हैं, आराम से करेंगे I अब मैं ध्यान दूंगी कैसी रगड़ाई होती है चूत की इस कंडोम को लंड पर चढ़ा कर चुदवाने से।”

हम अंदर कमरे में आ गए। ज्योति बेड के किनारे पर बैठ गई, और मैं खड़े लंड के साथ भरजाई के सामने खड़ा हो गया। ज्योति ने कंडोम के साथ ही लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगी। ज्योति भी मस्त लंड चूसती थी, शीला की तरह।

लंड चूसते-चूसते ज्योति अपनी चूत की दरार में उंगली फेरने लगी। लगता था ज्योति की चूत तैयार हो गयी थी।

ज्योति बोली, “चल आजा जीते, डाल इस बख्तरबन्द, हथियार से लैस लंड को चूत के अंदर और कर रगड़ाई।” कह कर ज्योति खड़ी हुई और बोली, “अब कैसे चोदेगा जीते?”

मैंने कहा, “भरजाई इस मामले में मैं अपनी मर्जी नहीं करता।” ज्योति ने मेरे होंठ अपने होठों में ले लिए और फिर कुछ चूस कर बोली , “मेरा जीता।” ये कह कर ज्योति बेड के किनारे पर ही लेट गयी और टांगें उठा कर चूत की फांकें उंगलियों से फैला दी और बोली, “आजा।”

मैंने बैठ कर भरजाई की चूत का दाना चूसा, छेद में उंगली डाल कर आगे पीछे की। ज्योति की चूत बिलकुल तैयार थी, लेसदार नमकीन पानी से भरी हुई।

ज्योति ने चूतड़ घुमाए और बोली, “बस जीते डाल अंदर कर रगड़ाई चूत की, दे मजा।”

ज्योति की खुली चूत के सामने मेरा लंड ज्योति की चूत के दाने के सामने था। अगर मैं घुटनों को थोड़ा मोड़ता तो मेरा लंड ज्योति की चूत के छेद के सामने आ जाता।

मगर मुझे अजीत सिंह गिल उर्फ़, जीत, जीता, जीते को पता था की चुदाई के वक्त पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ चुदाई पर रहना चाहिए, इस पर नहीं कि यार टांगें थोड़ी मोड़ लो जिससे लंड सीधा और पूरा चूत में चला जाये।

मैंने भरजाई टांगें अपने कंधों पर रखी, सहारा देने के लिए जिससे ज्योति चूतड़ उठा ले और मैं उसके नीचे तकिया रख कर चूत का छेद थोड़ा ऊपर कर के लंड के बिल्कुल सामने ले आऊं।

यही अगर ज्योति फर्श पर खड़ी हो कर झुक जाती और चूतड़ पीछे करके चुदाई करवाती तो पांच फुट नौं इंच लम्बी भरजाई की टांगें इतनी लम्बी थी कि फर्श पर खड़ी हो कर झुक कर खड़ी होने पर ज्योति की चूत का छेद बिलकुल लंड के सामने होना था, जैसे शीला की चुदाई के वक्त हुआ था।

जैसे ही मैंने भरजाई की टांगें अपने कंधों पर रखी, भरजाई ने आंखें खोली और मुझे देखा, जैसे पूछ रही हो, “जीत क्या करना है, कैसे चोदना है?”

मैं ज्योति की मंशा समझ गया और बोला, “कुछ नहीं भरजाई थोड़े चूतड़ ऊपर करने है, चूत ऊपर उठानी हैं।”

ज्योति ने फिर आंखे बंद कर ली और पूरा बोझ मेरे कंधो पर डाल कर चूतड़ ऊपर उठा लिए। मैंने एक पतला सा तकिया ज्योति के चूतड़ों के नीचे रख दिया। चूत का छेद बिलकुल लंड के सामने था।

तैयारी पूरी हो चुकी थी। मैंने ज्योति की टांगें अपने कंधो से उतार कर थोड़ी चौड़ी की, लंड अपने आप छेद पर बैठ गया।

जैसे ही लंड ने चूत के छेद को छुआ, ज्योति ने एक सिसकारी ली ” आह जीते।” और इसके साथ ही एक ही बार में मैंने लंड झटके के साथ अंदर डाल दिया।

कंडोम के साथ लंड रगड़ा लगाता हुआ जब अंदर गया तो ज्योति ने एक ऊंची सिसकारी ली, “आआआ आह जीते मजा आ गया, क्या रगड़ कर गया है। चल अब रगड़ चूत को दबा कर, दिखा दे अपने इस मोटे लंड और कंडोम का कमाल।”

और फिर ये सरदार जो शुरू हुआ तो भरजाई की चीखें निकाल दी, मस्ती की चीखें, मजे की चीखें।

“आआह जीते चोद, और चोद रगड़ जीते  आआहमजा आ गया आआआ आह जीते आआह‌ ऊऊह्ह्ह अअअअ अह जीते जीते।” आधा घंटा ये चुदाई चली जिसमें मुझे नहीं पता ज्योति कितनी बार झड़ी। ज्योति जोर-जोर से चूतड़ ऊपर नीचे कर रही थी, चूतड़ हिलने बंद ही नहीं हो रहे थे। सिसकारियां कम ही नहीं हो रहीं थीं।

एका एक ज्योती ने चूतड़ हिलाने बंद कर दिए और बोली, “बस जीते बस। अब रुक जा, इतना मजा आ रहा है, कहीं मजे के मारे मर ही ना जाऊं मैं, बस।”

तीसरी चुदाई चल रही थी। मैंने लंड चूत से बाहर निकाला और कंडोम उतार दिया।

चुदाई की मस्ती में डूबी भरजाई कुछ समझ पाती, इससे पहले ही मैंने लंड वापस चूत में डाल दिया, और जोरदार धक्कों के साथ फर्रर्रर्र फर्रर्र से गर्मा-गर्म पानी से भरजाई की चूत भर दी।

पांच मिनट के बाद ज्योति ने आंखें खोली और प्यार और तसल्ली भरी आवाज में बोली, जीते तूने आज जन्नत की सैर करवा दी। क्या मजा आया, मेरी चूत भरी पड़ी है तेरे गरम पानी से।”

मजा तो मुझे भी बहुत आया था। मैंने भी धीमी आवाज में कहा, “भरजाई मजा तो मुझे भी कमाल का आया है। सच कहूं भरजाई चुदाई बड़ी ही मस्त करवाती हो आप।”

ज्योति बस इतना ही बोली,”जीते?” ज्योति के इस “जीते” में चूत और मन की पूरी तसल्ली छुपी थी।

कुछ देर ज्योति ऐसे ही लेटी रही आंखें बंद करके। शायद अभी भी मजा आ रहा था। फिर ज्योति ने आंखें खोलीं और अचानक धीरे से बोली ” जीते चम्पा को चोदेगा?”

मैं हैरान हुआ कि इस वक्त ये चम्पा कहां से याद आ गयी भरजाई को। क्या भरजाई आज की मस्त चुदाई का इनाम दे रही थी? जैसे पहली मस्त चुदाई कि बाद ज्योति ने शीला भी तो चुदवा दी थी मुझसे?

मैंने भी कहा, “नहीं भरजाई दो चूतें ही काफी हैं, आपकी और उस शीला की।”

ज्योति बोली, “वो बात नहीं जीते, सुना है ये महाराष्ट्र की औरतें बड़ी खुल कर चुदाई करवाती हैं।”

मैंने भी कहा, “चुदाई तो आप दोनों भी खुल कर करवाती हो भरजाई। आप से बढ़िया चुदाई चम्पा क्या करवाएगी।”

ज्योति बोली, “अरे जीते वो बात नहीं है, ये महाराष्ट्र की औरतें सुना है चुदाई करवाते हुए शोर बड़ा करती हैं। ये शोर ही चुदाई का मजा दोगुना-तिगुना कर देता है।”

और फिर हंसते हुए ज्योति बोली “जीते चम्पा के चूतड़ देखे हैं? इतनी बड़े-बड़े हैं कि नीचे तकिया रखने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी चूत उठाने के लिए। एक बार चोद के तो देख, चोदने में क्या जाता है”!

ज्योति की बातें सुन कर चम्पा चूत के सपने आने लगी और लंड में हरकत होने लगी। मैंने पूछ ही लिया, “भरजाई क्या आपके साथ खुली हुई है चंपा?”

ज्योति बोली, “मेरे साथ तो नहीं शीला के साथ खुली हुई है। जब इक्ठ्ठी होती हैं तो बड़ी मस्ती करती हैं। पता नहीं कैसी-कैसी बातें करती हैं आपस में।”

फिर भरजाई बोली, “ऊपर की चाबी तो चंपा के पास होती ही है। शीला पटा देगी चम्पा को और तू मजे ले लेना”।

मैं कुछ नहीं बोला। मगर चम्पा की चुदाई का जिक्र आते ही मेरा लंड फिर से हरकत में आ गया। मैंने ज्योति की चूत पर हाथ फेरते हुए पूछा, “भरजाई एक और चुदाई करनी है?”

ज्योति लगभग चिल्लाते हुए बोली, “क्या? एक और चुदाई? क्या बात है जीते चम्पा का नाम सुनते ही खड़ा हो गया?” फिर कुछ पल चुप रहने कि बाद बोली, चल ठीक है। पर कंडोम चढ़ा कर करेंगे।”

मैंने भी कहा, “जैसी मेरी प्यारी भरजाई कि मर्जी।”

जैसे ही ज्योति ने चम्पा की चुदाई के लिए इतना कुछ कहा कि मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया।मैंने ज्योति की चूत पर हाथ फेरते हुए पूछा, “भरजाई एक और चुदाई करनी है?”

एक और चुदाई की बात सुन कर ज्योति कुछ हैरान सी हुई। कुछ पल चुप रहने कि बाद ज्योति बोली, “चल ठीक है। पर कंडोम चढ़ा कर करेंगे।”

फिर ज्योति मुझसे बोली, “जीते तू लेट जा। तूने बड़ी मेहनत की है I इस बार मैं चोदती हूं ऊपर से।”

मैं तो सख्त हो चुके लंड के साथ तैयार ही था, बिस्तर पर लेट गया।

ज्योति ने कुछ देर लंड चूसा और बोली, “जीते कंडोम कहां है?”

मैंने कहा , “भरजाई कुर्ते के जेब में पूरा पैकेट है निकालो।”

ज्योति कंडोम लाई और मेरे लंड पर रख कर पूरा पीछे की तरफ खोल दिया। सब कुछ तैयार था। बस अब चुदाई ही होनी बाकी थी, सांड के ऊपर गाय वाली।

ज्योति ने टांगें मेरे दोनों तरफ की, लंड पकड़ कर चूत के छेद पर रक्खा और पूरा लंड एक ही बार में “आआह जीते आअह” की सिसकारी के साथ अंदर ले लिया। इसके बाद जो ज्योति ने धक्के लगाए लग रहा था आज की पहली चुदाई हो रही थी। दस मिनट ज्योति की उठा पटक से मैं झड़ने को हो गया।

मैंने ज्योति से कहा, “भरजाई मेरा निकलेगा अब। अगर पानी अंदर छुड़वाना है तो कंडोम उतार लें?”

ज्योति ने तो जैसे सुना ही नहीं, बस ऊपर नीचे होती रही। साथ ही सिसकारियां ले रही थी “आआह जीते आआ  आहआ अआह जाने वाली हूं मैं आअह गयी-गयी।” और दो-तीन जोरदार धक्कों के साथ ही ज्योति ढीली हो गयी। मेरा भी पानी निकल चुका था। ज्योति उठी और बाथरूम चली गयी। मेरा लंड भी ढीला हो गया। मैंने सोचा ज्योति बाथरूम से आ जाए तो मैं भी जा कर कंडोम उतार कर लंड साफ कर लूं।

पांच मिनट गुजर गए, सात मिनट गुजर गए ज्योति नहीं आई। मैं देखने के लिए बाथरूम में गया के क्या हो गया? मूतने में तो इतना टाइम नहीं लगता। बाथरूम में गया तो देखा ज्योति टॉयलेट सीट पर अपना सर अपने हाथों में पकड़ कर बैठी थी।

मैं ज्योति के सामने गया और पूछा, “भरजाई क्या हुआ ठीक तो हैं आप।”

ज्योति ने सर उठाया और हंस दी, “जीते मजा आना ही बंद नहीं हो रहा मैं क्या करूं।”

मैंने कहा “चलो अंदर चलते हैं। थोड़ा आराम करलो।” मैंने ज्योति को सहारा दे कर उठाया और डाइनिंग टेबल पर ले गया।

मैंने पूछा, “भरजाई हल्का पेग बनाऊं?”

ज्योति बोली “नहीं जीते, वैसे ही सर घूम रहा है। पता नहीं कैसी चुदाई की है तूने। चूत में अभी भी झनझनाहट मची पड़ी है। अभी भी ऐसा लग रहा है जैसे तेरा लंड चूत के अंदर कुलबुला रहा है, रगड़े लगा रहा है। जीते अगर ये इस कंडोम की वजह से है तो फिर तो हमेशा इसी को लंड पर चढ़ा कर चुदाई करवानी चाहिए।”

मैंने भी कहा, “बिलकुल भरजाई चुदाई में तो मजा आना ही चाहिए, कैसे भी हो। जब दो-तीन बार मजा आ जाए और लंड का पानी अंदर छुड़वाना हो तो बता दो। बिना कंडोम के आख़री चुदाई करवाओ, आम के आम गुठलियों के दाम। चुदाई का मजा भी पूरा और आखिर में गरम पानी भी चूत में डलवा लो। जैसे अब हम करेंगे।”

मेरा इतना कहने भर की देर थी, कि भरजाई आई और मेरी गोद में खड़े लंड पर बैठ गयी। मैंने कहा “भरजाई, चूत में लेकर बैठ जाओ, मजा आएगा।” मुझे उस वक्त शीला याद आ गयी, जब वो मेरी गोद में मेरा लंड अपनी चूत में लेकर बैठ गयी थी।

ज्योति मेरी तरफ पीठ करके लंड अपनी चूत में लेकर बैठ गई। मैं कुर्सी पर थोड़ा नीचे की तरफ सरक गया और अपनी टांगें खोल लीं जिससे लंड पूरा का पूरा चूत के अंदर तक बैठ जाये। पीछे से हाथ डाल कर ज्योति की चूचियों के निप्पल मसलने लगा।

बीच-बीच में मैं अपने पेग में से छोटे-छोटे व्हिस्की के घूंट भी भरता जा रहा था।

ज्योति अपनी चूत को कभी टाइट करती थी कभी ढीला करती थी। कंडोम अभी भी लंड के ऊपर ही थी। कभी-कभी ज्योति आगे-पीछे हिलती थी तो उसकी चूत के अंदर कंडोम चढ़ा हुआ लंड रगड़ खाता था और ज्योति के मुंह से सिसकारी निकलती थी “आआह  आआआआह  जीत।”

दस मिनट के बाद मुझे लगा की ज्योति की चूत बीच-बीच में पानी छोड़ रही है।

फररर सररर के साथ गरम-गरम पानी मेरे लंड पर गिर कर मेरी जांघों पर बह रहा था।

मैंने ज्योति से कहा, “भरजाई चूत फिर गरम हो रही है क्या, बड़ा पानी छोड़ रही है।”

ज्योति ने जवाब दिया, “जीते ये ठंडी ही कहां हुई है, ये तो गरम ही है।” फिर रुक कर बोली, “चोदेगा अभी?”

मैंने भी कहा, “भरजाई मेरा तो खड़ा ही है। जब आप का मन करे, जब आप बोलो तभी चोद दूंगा। इस बार पानी भी अंदर ही छुड़ाना है।”

ज्योति आगे पीछे हिलती हुई बोली, “चल फिर चलते हैं। निकाल एक बार और मेरी चूत का पानी और भर दे मेरी चूत अपने गर्म-गर्म पानी से, निहाल करदे मेरी चूत को आज, भाग्य खोल दे मेरी चूत के।” ज्योति तो जैसे लंड चूत में लेने हुए चुदाई के लिए बेताब हो रही थी।

ये कह कर ज्योति खड़ी हो गयी। मेरा खड़ा लंड कंडोम के साथ जब ज्योति की चूत से बाहर निकला तो ज्योति के मुंह से फिर सिसकारी निकली “आआआह जीत।”

कमरे के अंदर जाते ही ज्योति बिस्तर पर लेट गयी और तकिया चूतड़ों के नीचे रख कर चूत उठा दी। टांगें चौड़ी की और बोली, “आजा जीते चढ़ जा और डाल अंदर।”

मैं भी सोच रहा था, चुदाई भी क्या चीज है। मन ही नहीं भरता चुदाई करके और करवा के।

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