मां बेटे की चुदाई – एक मनोचिकित्सक की ज़ुबानी-1

ये कहानी अन्य कहानियों की तरह ही पूर्णतया काल्पनिक है। इस कहानी के किसी भी पात्र या घटनाओं का वास्तविकता से कोइ सम्बन्ध नहीं। ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए लिखी गयी है।

मैं हूं 52 साल की मालिनी अवस्थी, कानपुर निवासी।

52 तो कहने की बात है, अपनी संतुलित दिनचर्या और ठीक खानपान के कारण मैं 35 से ज्यादा की नहीं लगती।

वैसे जहां तक मेरी आदतों का सवाल है, आदतें तो मेरी 25 वाली हैं। चूत चटवाना, चुदवाना। ये सब काम तो कोई 25 वाली भी क्या करती होगी, जैसे मैं करती हूं।

पेशे से मैं डाक्टर हूं, एक साइकाइट्रिस्ट। साइकाइट्रिस्ट थोड़ा मुश्किल सा शब्द है। सीधी देसी भाषा में बोला जाए तो मनोचिकित्सक। मनोचिकित्स्क मानसिक रोगों यानि दिमाग़ी बीमारियों का इलाज करते हैं। यहां मैं एक बात और बताना भी जरूरी समझती हूं, और वो ये है कि मनोचिकित्स्क अपने मरीजों का इलाज दवाईयों से नहीं बातों से करते हैं।

वैसे मेरी आप सब से मुलाक़ात पहले भी हो चुकी है, जब मैं लखनऊ गयी थी एक सेमीनार के सिलसिले में। लखनऊ में मैं अपने एक महिला मित्र डाक्टर कृष्णा सोबती के घर पर रुकी थी।

कृष्णा के क्लिनिक में ही मुझे एक गांडू युग त्रिपाठी की नयी ब्याही पत्नी चित्रा की समस्या सुलझाने का मौक़ा मिला था (“अजब गांडू की गजब कहानी” पढ़ें)।

औसत से छोटे लंड वाला गांडू युग त्रिपाठी अपनी पत्नी चित्रा की सही चुदाई नहीं कर पा रहा था, और इसी सिलसिले में मुझे गांडू युग त्रिपाठी की पत्नी चित्रा से मिलने और बात करने का मौक़ा मिला था।

मेरे बात करने के बाद चित्रा की चाची सुभद्रा (जो चित्रा के पति युग की बुआ भी थी ) की रजामंदी से चित्रा की चुदाई उसके ससुर देसराज त्रिपाठी के साथ शुरू हो गयी। कुछ दिनों के बाद चित्रा युग के दोस्त राज से भी चुदाई करवाने लग गयी।

कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। वक़्त गुजरने के साथ युग भी अब ठीक हो गया, और चित्रा की चुदाई करने लग गया। फिर मुझे पता चला कि युग तो चित्रा को अब चोदता ही है, चित्रा अपने ससुर और युग के दोस्त राज से भी चुदाई करवाती है।‌ अब चित्रा, चित्रा का पति युग, चित्रा के ससुर देस राज और युग का दोस्त राज, सब अपनी-अपनी जगह खुश हैं।

खैर ये तो हुई हमारी लखनऊ की मुलाक़ात की बात।

अब बात करते हैं यहां की, कानपुर की। कानपुर के सब से मंहगे इलाकों में से एक सिविल एवेन्यू में मेरा घर हुए मनोचिकित्सा का क्लिनिक है। सिविल एवेन्यू के मेरे इस दुमंजिले घर में नीचे की मंजिल में पांच कमरे हैं जिनमें दो कमरों में मेरा क्लिनिक है।

मेरे इस क्लिनिक में मेज कुर्सियों के आलावा एक बड़ा टेप रिकॉर्डर है, जिसमें एक बार एक से ज्यादा कैसेट एक बार में चलाने की व्यवस्था है। मेरे पास जो टेप रिकार्डर है उसमें एक बार में चार कैसेट चल सकते हैं। इस क्लिनिक के आगे के कमरे का दरवाजा बाहर की तरफ खुलता है, जहां से सलाह लेने वाले लोग आते हैं ।

क्लिनिक वाले इस कमरे के साथ लगता एक और कमरा है जिसके एक कोने में एक बेड लगा हुआ है। आटोमेटिक बेड, बिजली से ऊपर-नीचे होने वाला बेड। ये बेड मरीज के मुआइने के लिए इस्तेमाल होता है।

क्लिनिक वाले इस कमरे के दो दरवाजे हैं जो पीछे की तरफ खुलते हैं । एक दरवाजा एक कमरे में खुलता है जो गेस्ट रूम की तरह इस्तेमाल होता है। इस गेस्ट रूम में और भी कई काम होते हैं। मेरे खास, निजी काम।

इस कमरे का दूसरा दरवाजा एक दूसरे कमरे में खुलता है जिसमें कसरत करने मशीनें लगी हुई हैं, मतलब इसमें एक छोटा सा जिम है । इसी नीचे की मंजिल में एक पैंट्री- रसोई भंडार घर है जिसमें चाय नाश्ते का जुगाड़ रहता है। मेरी बाकी की रिहाइश, मेरा बेड रूम, ड्राइंग रूम, रसोई घर, सब इस घर की ऊपर की मंजिल पर हैं।

घर में मेरे अलावा अक्सर तीन लोग और होते हैं। छियालीस साल की प्रभा मेरी काम वाली। साफ़ सुथरी, कम बोलने वाली प्रभा विधवा है। कई सालों से मेरे पास है और अब यही उसका घर है। ऊपर की मंजिल में अलग से एक कमरा उसके लिए है।

प्रभा के एक बेटा एक बेटी हैं। दोनों शादी शुदा हैं। तीज त्योहार पर उसकी मां प्रभा का हल चाल पूछने आते हैं। प्रभा कभी उनके यहां नहीं जाती। एक सिक्योरिटी गार्ड है, जो किसी एजेंसी की तरफ से आता है और एक अड़तीस चालीस साल का शंकर है – मेरा ड्राइवर।

गाड़ी में मेरे साथ शंकर का मुश्किल से पूरे दिन में कहीं बाहर का एक आध ही चक्कर लगता है। बाकी का वक़्त शंकर दूसरे काम, जैसे बाजार से कुछ लाना हो या बिजली, पानी का बिल जमा करवाना हो, बैंक का छोटा-मोटा काम हो, ये सारे काम करता है। बाकी बचे टाइम में शंकर हथेली पर तम्बाकू रगड़ता रहता है और सिक्योरिटी गार्ड के साथ गप्पे हांकता रहता है।

एक सफल मनोचिकिस्तक बनना आसान नहीं। इसके लिए पढ़ाई और मेहनत दोनों बहुत करनी पड़ती हैं। पहले पांच साल डाक्टरी की पढ़ाई यानि MBBS, फिर दो साल मनोचकिस्तक का कोर्स और उसके बाद एक सफल तजुर्बेकार मनोचिकिस्तक के पास एक साल की ट्रेनिंग। कुल मिला कर हुए ये हुए आठ साल।

मैंने अब तक शादी नहीं की। अब सीधी सी बात है – आठ साल की पढ़ाई कम नहीं होती। अब इस सब के बीच कोइ पढ़ाई की सोचे या चुदाई की सोचे। ‌वैसे भी मेरी अपनी सोच है कि शादी निक्क्में, चूतिये किस्म लोग करते हैं जिनको एक खूंटे से बंध कर रहना पसंद आता है। मैं उनमें से नहीं हूं। मुझे एक आज़ाद पंछी की तरह ज़िंदगी गुज़ारने में ही आनंद आता रहा है।

मैं बड़े-बड़े नामी गिरामी हस्पतालों में बतौर मनोचिकिस्तक काम कर चुकी हूं। नाम और पैसा दोनों बनाये हैं। अब हस्पतालों में काम करने की आवश्यकता नहीं, घर में ही मनोचिकित्सा का क्लिनिक चलाती हूं जिसके बारे में मैं ऊपर बता चुकी हूं।

ये क्लिनिक चलाने के अलावा अब मैं मनोचिकिस्ता की सलाहकार भी हूं जिसे अंगरेजी में कंसल्टेंट कहते हैं । बड़ी-बड़ी स्वयंसेवी संस्थाएं जिन्हे अंग्रेजी मैं NGO कहा जाता है, और बड़े-बड़े हस्पताल मुझे मनोचिकित्सा के विषय पर लेक्चर देने के लिए बुलाते हैं। इस तरह के एक दिन के लेक्चर या भाषण का मैं पंद्रह से बीस हजार रुपया लेती हूं।

कई बार ऐसे भाषणों के सिलसिले में कानपुर से बाहर शहरों में भी जाना पड़ता है, जैसे दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी, आगरा, इलाहाबाद, बंगलुरु या मुंबई I ऐसे शहरों में व्याख्यानों के लिए बुलाये जाने पर मेरा आना-जाना और ठहरना अव्वल दर्जे का होता है ।

मनोचिकिस्ता विषय पर मैंने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। कहने का मतलब ये है कि ज़िंदगी बढ़िया चल रही है। पैसे की कोइ चिंता नहीं है।

मैं उत्तर प्रदेश की कई NGO के साथ जुड़ी हुई हूं। ये संस्थाएं जो उन लोगों की मदद करती है जो मानसिक तौर पर परेशानी का सामना कर रहे होते हैं। कभी-कभी ये NGO ऐसे मानसिक रोगियों को इलाज के लिए मेरे पास भी भेज देते हैं।

कई बार जब दूसरे शहरों में लेक्चर के लिए जाती हूं तो ये NGO मुझे अपने मरीजों के बारे में बात करने और उनकी मदद करने के लिए भी बुला लेते हैं। गांडू युग त्रिपाठी की पत्नी चित्रा से मुलाक़ात भी ऐसे ही हुई थी जब मैं लखनऊ मनोचिकित्सा विषय पर एक लेक्चर देने के लिए गए थी।

NGO द्वारा भेजे इस तरह के मानसिक रोगियों का इलाज करने का मैं कोइ पैसा नहीं लेती। मेरा ये काम धर्मार्थ होता है। आखिर मुझे अपना परलोक भी तो संवारना है।

ये तो हो गयी मेरे कारोबार की जानकारी।‌ अब क्यूंकि मेरे पास खाली समय बहुत होता है तो सोचने वाली बात है कि मैं इस खाली समय में क्या करती हूं?

औरतों की बेफिजूल की किट्टी पार्टियों में मेरी कोइ दिलचस्पी नहीं है जिसमें औरतें मेज पर बैठ कर हाथ में ताश के पत्ते पकड़ कर चूतिया किस्म की बातें करती हैं, “तूने कभी रिक्शा वाले या धोबी से चुदवाई है? ये साले मस्त चुदाई करते हैं। सूखी ही रगड़ देते हैं चूत, साले थूक भी नहीं लगाते।”

ऐसी ही चूतिया किस्म की बातें करते-करते अपनी या एक दूसरी औरत की गांड या चूत में उंगली घुसा कर मौज मस्ती करती हैं।

अपने इस खाली समय में मैं अपने कंप्यूटर पर ब्लू फ़िल्में या चुदाई की फ़िल्में देखती हूं, या फिर चुदाई की कहानियां पढ़ती हूं। सविता भाभी की दस-दस पंद्रह-पंद्रह मिनट की चुदाई की फिल्में मेरी मनपसंद की फिल्में हैं।

अब अगर आप में से कोइ ये सोचता है कि 52 साल की उम्र में सेक्स के मजे लेने की इच्छा खत्म हो जाती है या चूत लंड नहीं मांगती तो वो गलत सोचता है। चूत तो साठ बासठ तक भी मस्त लंड के मजे लेती है, बस इतना करना होता है कि संतुलित खान-पान और नियमित कसरत से जिस्म और चूत दोनों कड़क रखने होते हैं।

मेरी अपनी चूत भी ऐसी कमुक चुदाई की कहानियां पढ़ते-पढ़ते या अपने कम्प्यूटर पर सविता भाभी की चुदाई देखते-देखते गीली हो जाती है। फिर मुझे अपनी इस चूत का इलाज करना ही पड़ता है।

इसके लिए मेरे पास अलग-अलग तरह के कई जुगाड़ हैं जिनके बारे में मैं आगे बताऊंगी।

चुदाई के मामले में मैं कोइ रिस्क नहीं लेती, यहां कानपुर में तो विशेष कर। जानकार मर्दों से तो तब तक चुदाई नहीं करवाती जब तक ये सुनिश्चित ना हो जाए कि सामने वाला एक बार चुदाई करने के बाद चूत का पिस्सू बन कर पीछे ही नहीं पड़ जाएगा।

सबसे बढ़िया रहता है ऐसे मर्दों से चुदाई करवाने में जो अपनी या अपने परिवार के किसी सदस्य की किसी दिमागी बीमारी के बारे में सलाह लेने आते हैं। ऐसे लोग अक्सर पढ़े लिखे और अमीर परिवारों से होते हैं। लेकिन चुदाई इनके साथ तभी होती है अगर देखने भालने में अच्छे हों और मुझे समझ आ जाए कि ये पीछे एक बार चुदाई करवाने के बाद पीछे पड़ने वाला नहीं है।

चूत चुदाई के अलावा मुझे चूत चूसने का और चूत चुसवाने का भी शौक हैं। क्या मस्त खुशबू होती है चूत की। मगर इस चूत चुसाई के खेल में शर्त बस इतनी सी है कि लड़की या औरत खूबसूरत और साफ़ सुथरी होनी चाहिए।

लंड चुसाई भी खूब करती हूं मैं। हर चुदाई से पहले लंड मुंह में जरूर लेती हूं मैं। लंड मुंह में लेते ही मेरी चूत फर्रर्र से पानी छोड़ देती है और आगे के कामों के लिए तैयार हो जाती है। अगर कभी कोइ चूतिया चूत चोदते-चोदते गांड चोदने के मूड में आ जाये और गांड में लंड डालने की जिद ही कर बैठे तो फिर गांड भी चुदवा लेती हूं। गांड में लंड लेने में भी मुझे कोइ परहेज नहीं है।

कहने का मतलब ये कि जब बिस्तर में होती हूं तो सब जगह लंड लेती हूं, ऊपर नीचे, आगे, पीछे। इस तरह लंड लेने में मैं ज्यादा नख़रेबाजी या ना नुकर नहीं करती।‌ चुदाई ही करवानी है तो फिर नख़रेबाजी का क्या काम?

वैसे चूत का पानी छुड़वाने के लिए मैं मर्दों की मोहताज नहीं। असली चुदाई जैसे मजे लेने के लिए मेरे पास विदेशी जुगाड़ भी हैं, वो भी हर तरह के। जैसे कि रबड़ का सात इंच लम्बा मोटा लंड I बिल्कुल असली के लंड जैसा। ऊपर की तरफ असली लंड के टोपे की तरह हल्की सी गोलाई लिए हुए। चूत की अलग से रगड़ाई के लिए असली लंड के टोपे से इस रबड़ के लंड का टोपा थोड़ा बड़ा है।

इस रबड़ के लंड पर उभरी हुई धारियां भी हैं, जैसे असली के लंड पर उभरी हुई नसें होती हैं। जब ये लंड चूत के अंदर होता है तो ये उभरी हुई धारियां चूत के अंदर अलग से रगड़ाई का काम करती हैं।

इस लंड में नीचे की तरफ एक बैटरी डलती है। इस बैटरी को चालू करने से लंड कम्पन या वाइब्रेट करने लगता है। इस लंड को चूत में डालो, वाईब्रेटर चालू करो और लंड को चूत में आगे-पीछे करो, और असली लंड जैसे मजे लो। जुगाड़ विदेशी हैं लेकिन यहां कानपुर में भी मिलते हैं, बस जान पहचान होनी चाहिए।

यहीं कानपुर में एक शोरूम है जिसका मालिक है संदीप सोलंकी। मेरा जानकार है और साथ ही मेरा बड़ा भी मुरीद है। संदीप ही ये चुदाई के मजे लेने वाले खिलौने मंगवाता है।

संदीप कहता है कि वो मेरी मदद का बड़ा एहसानमंद है। वैसे मुझे तो याद भी नहीं कि कब और कैसे मैंने उसकी मदद की थी। संदीप से जान पहचान का फायदा ये है कि जब भी चुदाई का कोइ भी नया खिलौना आता है तो संदीप मुझे जरूर बताता है।

खैर बात चुदाई के खिलौनों की हो रहे थी। जैसा मैं बता रही थी ये रबड़ के लंड चूत में लेते हुए अगर चूत ज्यादा ही गरम हो जाए तो लंड की बैटरी का स्विच चालू करो। बैटरी चालू करते ही लंड कम्पन भी करने लगेगा, और चूत का मजा दुगना हो जाएगा।

इस लंड के साथ एक चड्ढी की तरह का कमरबंद भी है। इस चड्ढी में एक छेद है, जिसमें अंदर की तरफ से रबड़ का सात इंची लंड इस चड्ढी में फिट हो जाता है। इस लंड लगी हुई चड्ढी को पहन लो तो चड्ढी के आगे रबड़ का लंड असली लंड जैसा सात इंच का कड़ा लंड दिखाई पड़ता है।

इसी चड्ढी के आगे की तरफ दो लटकते हुए टट्टे भी हैं, बिल्कुल असली टट्टों जैसे बड़े-बड़े और लम्बे। ये टट्टे रबड़ के लंड की जड़ में ऐसे बैठ जाते हैं जैसे असली लंड के असली टट्टे हों।

ये जुगाड़ दो लड़कियों में आपस में चुदाई का मजा लेने के काम आता है। मतलब एक लड़की लंड लगी हुई चड्ढी पहन लेती है हुए दूसरी लड़की की चूत में रबड़ का लंड डाल कर चुदाई उसकी करती है। इसमें चोदने वाली लड़की को मजा नहीं आता चुदाई करवाने वाली लड़की को असली चुदाई जैसा ही मजा आता है।

जब एक लड़की ये लंड लगी हुई चड्ढी पहन कर लंड दूसरी लड़की की चूत में डाल कर धक्के लगती है तो असली टट्टों की तरह ये टट्टे भी चूत से पट्ट पट्ट पट्ट पट्ट की आवाज के साथ टकराते हैं और असली चुदाई जैसा मजा देते हैं। चड्ढी में लगे हुए इस लंड को देख कर ऐसा लगता है जैसे असली लंड खड़ा है और चूत में घुसने के लिए तैयार है।

मैंने अभी तक इस लंड को इस तरह इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि मुझे इसकी जरूरत ही नहीं पडी I ये तो संदीप ने मुझे भिजवा दिया था और वो बुरा ना मान जाए, इसलिए मैंने ये रख लिया था। बड़ा ख्याल रखता है ये संदीप सोलंकी मेरा।

32 साल का संदीप सोलंकी, जब भी मुझसे मिलने आता है, मुझे देखते ही उसकी आखों में गुलाबी डोरे आ जाते हैं और हाथ लंड पर पहुंच जाता है। लेकिन अभी तक उसने मुझे चोदने की इच्छा नहीं जाहिर की।

जिस दिन ऐसा कुछ करने का बोलेगा तो देखेंगे क्या करना है।

मैं तो बस इस लंड को चूत में डाल कर वाईब्रेटर चालू कर देती हूं, और आंखें बंद कर लेती हूं और चुदाई के मजे लेती हूं। फिर आंखों के आगे भले कोइ फिल्म एक्टर ले आओ या कोइ सुपरमैन।

मेरे पास एक चूत का दाना सहलाने वाला बैटरी से चलने वाला सेक्स टॉय – खिलौना – भी है जो चूत का दाना ऐसे चूसता है कि कोइ मर्द भी क्या दाने की चुसाई कर सकता है।

एक और ऐसा ही बैटरी से चलने वाला खिलौना है जिसके दोनों तरफ मोटे सात-सात इंच लम्बे दो इंच मोटे दो लंड जैसे कुछ हैं जो गांड और चूत में एक ही बार इकट्ठा डाले जाते हैं। इसमें भी बैटरी डलती है। गांड और चूत में डाल हर जब इसे चालू किया जाता है तो ये चूत और गांड दोनों में वाइब्रेट या कम्पन करते हुए जन्नत का मजा देता है।

वो एक एक्ट्रेस है, नाम कुछ सुरा भास्कर है या शायद हरा भास्कर है। उसने भी ये वाईब्रेटर एक फिल्म में अपनी चूत पर रगड़ा था। फिल्म थी शायद वीरे की शादी, या वीरे का विवाह।

साइंस की तरक्की का तो ये हाल है कि रबड़ के लंड ही नहीं, रबड़ की चूत, रबड़ की गांड, रबड़ के मम्मे, रबड़ के होंठ – चुदाई के मजे लेने के लिए सब कुछ मिलता है।

सच में, साइंस ने बड़ी कमाल की तरक्की कर ली है।

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अगला भाग पढ़े:- मां बेटे की चुदाई – एक मनोचिकित्सक की ज़ुबानी-2