मेरी शादी ठीक से हुई, मेरे जिम्मे सिर्फ़ दो काम थे, पहला घर और ससुराल में शादी की सभी परम्पराएँ पूरी करना और दूसरा शादी में शामिल मेहमानों से शादी की शुभकामनाएँ स्वीकारना ! इसके अलावा शादी की तैयारियों के कई काम भी जो चलते फिरते मुझे नजर आते, जल्दी ही उन्हें करना पड़ता या उन्हें करने के लिए किसी को कहना पड़ता।
बारात लेकर स्नेहा के गांव जाना और फ़िर स्नेहा के साथ शादी करके लौटते समय तक तो मैं बहुत थक गया था। पर सारी थकान इस सोच से दूर करता कि अब स्नेहा मुझे रोज चोदने के लिए मिल गई है।
इस कहावत को चरितार्थ होते मैंने अभी ही देखा। मेरी सारी थकान तब फुर्र हो जाती जब स्नेहा का हाथ ऊपर से ही सही मेरे लंड पर लग जाता। इ
स आनन्द को बताने मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं। पर साथ ही मैं महसूस कर रहा था कि स्नेहा भी मेरे साथ सैक्स का यह खेल खेलने का मजा ले रही है।
उसे जब भी मौका मिलता, वह मेरे लंड पर हाथ रख देती।
लौटते में हम अपनी कार में थे और ड्राइवर तथा मेरे भाई के दोनो बच्चे साथ में होने के कारण हमें ज्यादा कुछ करते नहीं बना। बस कभी वह मेरे लंड को छू लेती, या मैं उसके बूब्स या चूत दबा देता।
कार में स्नेहा ज्यादातर सोते हुए ही आई। हम लोग शाम तक घर पहुंचे, और आज रात को ही हमारी सुहागरात थी। सो घर पहुँचते ही मैं सोया, रात को जागना था ना इसलिए।
करीब दो घण्टे बाद मैं उठा, देखा तो पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था। कमरे से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी, रूम फ़्रेशनर स्प्रे किया गया था। मैं अभी कमरे को देख ही रहा था कि वहाँ भाभी आ गई।
उन्होंने मुझसे कहा- आप थोड़ी देर बाहर बैठिए, हमें इस कमरे को अभी और ठीक करना है। मैं उठकर बाहर आ गया और वहाँ मेहमानों के पास बैठ गया। यहाँ बैठे हुए मुझे एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया। तभी भाभी वहाँ आईं और मुझे बुलाकर अंदर कमरे में ले गई।यहाँ मुझे खाना दिया गया।
मैं खाना खाकर उठा ही था कि हमारे पड़ोस में रहने वाली अंजलि भाभी आईं और मुझे बोली- हीरा पाया है तुमने जस्सूजी। अब ऐश करिए जिंदगी भर।
मैंने कहा- भाभी, आप स्नेहा से मिलकर आ रहीं हैं ना?
अंजली भाभी बोली- मिलकर? अरे उसे आपके पास जाने के लिए तैयार कर रही थी। अब उन्हें देखकर बताइएगा कि कैसी लगी।
मैं गदगद हो गया, वाह अब इत्मिनान से स्नेहा को चोदने में मजा आ जएगा। अंजलि भाभी चली गई, इसके थोड़ी ही देर बाद भाभी व उनके साथ तीन महिलाएँ आईं, मुझसे बोली- चलिए जस्सूजी।
मैं तुरंत खड़ा हुआ और बोला- चलिए।
मेरे यह कहते ही सभी महिलाएँ खिलखिला उठी, उनमें से एक बोली- कितना बेचैन है बिचारा।
अब मैंने बात पलटते हुए कहा- कहाँ चलना है बताइए ना?
भाभी बोली- आपके कमरे में चलिए जस्सूजी।
मैं खुशी में विभोर हो उनके साथ चल पड़ा। मेरे कमरे के बाहर भाभी ने मुझे रोका और बोली- आप थोड़ी देर यहाँ रूकिए, मैं बस दो मिनट में स्नेहा से मिलकर आती हूँ।
यह बोलकर भाभी अंदर गई और जल्दी ही बाहर आ गई। अब सभी महिलाएँ मुझे मेरे कमरे में दरवाजे के बाहर से ही धक्का देकर कमरा बाहर से बंद कर लिया।
मैं भी अब राहत की सांस लेकर दरवाजे को अंदर से बंद करके पलंग की ओर बढ़ा। स्नेहा पलंग पर घुटने मोड़ कर बैठी हुई थी।
मैंने उसके पास पहुँच कर कहा- अब क्या नई दुल्हन की तरह शर्माते हुए बैठी हो, चलो जल्दी से कपड़े उतारो।
मैं पलंग पर चढ़ने लगा, तभी स्नेहा जल्दी से नीचे उतर गई। मैं भी नीचे आया और बोला- क्या हो गया?
तभी स्नेहा मेरे पैरों पर गिर कर बोली- आज से आप मेरे भगवान हैं। मुझे अपने से दूर मत कीजिएगा।
मेरी आँखों में आँसू आ गए- अरे, मैं तुम्हें अपने से दूर क्यूं करूँगा। तुम ही मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।
यह कहते हुए मैंने स्नेहा को पलंग पर बिठाया व कहा- आज अपना चेहरा तो दिखा दो। कितनी देर हो गई है, तुम्हें देखने को तरस रहा था मैं !
ऐसा कहकर मैंने उसका चेहरा ऊपर किया और उसे आज भेंट करने के लिए खरीदा नेकलेस उसके गले में डाल दिया। मैंने देखा कि आज तो स्नेहा गजब की सुन्दर दिख रही है। उसकी उपमा किस हिरोइन से करूं, आज तो वह सभी हिरोइनों से भी सुंदर दिख रही थी, मानो परी हो कोई !
वही संगमरमरी रंग, सुतवाँ नाक, आँखें ऐसी मानो किसी ने गोरे खिले रंग पर हरा काजू रख दिया हो। उसका गला देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि यह कुछ भी खाएगी पता चल जाएगा।
उसके स्तन वैसे ही उठे हुए, और आज सबसे ज्यादा देखने की चीज तो उसके चूतड़ थे, ये उसके सीने से भी ज्यादा उठे हुए दिख रहे थे। उसके रूप पर मंत्रमुग्ध हो मैंने स्नेहा से कहा- चलो फटाफट कपड़े उतार दो अब।
स्नेहा बोली- एक मिनट रूकिए, मैं फारमेल्टी तो पूरी कर लूँ।
यह बोलकर वह मेज के पास तक गई और वहाँ रखा गिलास लाकर मुझे देकर बोली- चलिए, इस दूध को जल्दी से खत्म कीजिए।
मैंने उसके स्तन पर हाथ रखा, बोला- आज रात को ये वाला दूध पीया जाता है, चलो निकालो जल्दी।
उसने कहा- ये वाला दूध और चूत दोनों पीने व चोदने को मिलेगी, पर पहले इस दूध को पीजिए जल्दी।
मैंने उससे गिलास लिया और दूध पीने के बाद उसी मेज पर रखे जग से और दूध लेकर उसी गिलास में डाला व स्नेहा को देते हुए कहा- लो अब तुम भी जल्दी से पियो।
स्नेहा ने करीब आधा गिलास ही दूध पी और गिलास वहीं रख दिया। स्नेहा को देर करते देख मैंने खुद ही उसके जेवर और कपड़े उतारने शुरू किए।
पहले उसके माथे पर सोने की चेन से लटके हुए तारों को उतारने के लिए दोनो कानों के पीछे बंधी चेन को खोला। अब नाक पर पहनी बड़ी सी नथनी भी उसी चेन से लगी हुई थी, नथनी स्नेहा उतारने लगी।
मैंने उससे कहा- बाली भी निकाल लेना ! और मैं उसके गले के पीछे नेकलेस के हुक खोलने लगा, इसके बाद कमरबंद को निकाला।
सब जेवर उतारकर वह बोली- अब अच्छा लग रहा है।
मैंने पहले उसकी साड़ी, फिर ब्लाउज व पेटीकोट उतारा। अब वह क्रीम रंग की ब्रा-पैन्टी के सेट में थी। उसे देखकर मैं सोच रहा था कि स्नेहा को इस रूप में देखने के लिए मुझसे भी मालदार लोग इस पर ना जाने क्या-क्या लुटाने को तैयार रहते, पर भगवान ने इसे मुझे सौंप दिया।
यह सोचकर मैंने अपने भगवान के प्रति दिल से आभार जताया।