कामिनी और दिव्या – अनोखी दास्ताँ (पार्ट 3)

कमरा बंद होते ही सामने देखा तो दिव्या लाल साड़ी में घूंघट डाले बैठी थी, मैं उसके पास गया, सारा कमरा गुलाबों से महक रहा था, लेकिन दिव्या के पास गया तो उसमें से आ रही सेंट की खुशबू मुझे ज्यादा मदहोश कर रही थी।

आज बहुत खुश था मैं … क्योंकि मेरी रानी आज मेरे सामने थी, धीरे से उसका घूंघट ऊपर उठाया तो उसने मेरी तरफ देखा फिर शरमा के नजरें नीची कर ली, सच में उसकी माँ ने उसे बहुत अच्छे से सजाया था, मैंने अपने चेहरा उसके पास लेजाकर उसके एक गाल को अपने होंठों के बीच दबा लिया और आँखें बंद करके उसे चूसने लगा.

अचानक दिव्या मेरे सीने से लग गई, उसकी साँसें बहुत तेज चल रही थी.
मैंने उससे पूछा- दिव्या, तुम खुश हो ना?
उसने नजरें उठा कर मेरी आँखों में देखा और बोली- आप खुश हैं ना?
मैंने पलकें झपका कर हाँ में उत्तर दिया तो वो फिर मेरे सीने से लग गयी.

फिर उसे मैंने लेटा दिया, मैं भी एक कंधे पर उसके पास लेटते हुए अपने होंठ उसके होंठों के पास ले गया, आज उसके होंठ मुझे बहुत हसीन लग रहे थे, ऊपर से लाल लिपस्टिक उसे गुलाब की पंखुड़ी होने का अहसास दिला रहे थे।

धड़कते दिल से मेरे होंठ जैसे ही उसके होंठों के पास आये तो मैंने उसकी साँसों को महसूस किया, उसकी आंखें बंद हो चुकी थी, हमारे होंठ आपस में मिल चुके थे, धीरे धीरे मैंने उन्हें चूसना शुरू किया, कभी ऊपर वाला कभी नीचे वाला तो कभी दोनों को एक साथ चूसने लगा, दिव्या अनाड़ी की तरह बीच बीच में मेरे होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच दबा रही थी।

अब मेरे हाथ फिसलते हुए उसकी कमर को छू रहे थे, मैं उसके पेट पर हाथ फिराने लगा, बहुत चिकना और सपाट पेट था, जब मेरा हाथ उसकी नाभि के नीचे जाता तब उसका शरीर कांपने लगता और वो हम्म हम्म करने लगती। मैं उसके होंठों को चूसता जा रहा था, अब होंठों पर मेरी पकड़ मजबूत हो चली थी।

लगभग 5 मिनट तक लिप-किस करने के बाद मैंने उसके कान के नीचे वाले हिस्से पर चुम्बन किया, तो झट से मेरे गले लग गई।

फिर मैंने उसके गले पर किस करना शुरू किया, अब मेरा एक हाथ उसके वक्ष पर आ चुका था, ब्लाउज के ऊपर से ही मैं उसे दबाने लगा, दिव्या के मम्मे ज्यादा बड़े तो नहीं लेकिन अच्छे आकार के थे. अब दिव्या के मुख से भी सिसकारियां निकलने लगी थी।

एक हाथ से अब मैं ब्लाउज के हुक खोलने लगा, सब हुक खोलने के बाद मैंने ब्लाउज को हटाने की कोशिश की, तो दिव्या ने उठ कर उसे निकालने में मेरी मदद की। उसने वही ब्रा पहनी थी जो मैंने पसन्द की थी, मैंने उसके क्लीवेज पर किस किया, फिर ब्रा की साइड वाली पट्टियों को कंधे से नीचे उतार दिया तो दिव्या के नग्न उरोज मेरे सामने आ गए. आह… इतने मुलायम और चिकने मम्मे मैंने कभी नही देखे थे, मैं तो बस पागल हो गया और टूट पड़ा दोनों मम्मों पर!

उधर दिव्या की सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थी।

एक हाथ से मैं दिव्या की साड़ी खींचने लगा और उसे उसके बदन से अलग कर दिया. उसके बाद मैंने पेटिकोट का नाड़ा खींच कर खोल दिया और उसे नीचे खिसका दिया, इस दौरान मेरे हाथ उसकी जांघों से टकराये तो लगा कि शायद उसकी मां ने उसके पूरे शरीर की वैक्सिंग कर दी थी.

अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था, मम्मों को छोड़ अब मैं उसके पेट को चाटने लगा। फिर जांघों को चाटना और चूमना शुरू किया, दिव्या ने सफेद रंग की छोटी से वी शेप पेन्टी पहन रखी थी, जिसका जांघों के पास वाला भाग गीला हो रहा था।

सच में दोस्तो, उसकी चिकनी टांगें चाटने का मजा ही अलग था, कुछ देर बाद जांघें चाटना छोड़ कर अपने दोनों हाथों से उसकी पैंटी हटाना शुरू किया तो दिव्या ने कमर उठा कर मेरी मदद कर दी। उफ्फ्फ… आह…ह्म्म्म शानदार… इतनी सुंदर चूत मैंने पहली बार देखी थी, उसकी तारीफ में शब्द कम पड़ जाएं इतनी सुंदर चूत थी।
चूत के बाल साफ़ किये हुए होने से बिल्कुल चमक रही थी चूत।

दोस्तो, दिव्या की चूत के बारे में आपको बता दूं, उसकी चूत ऊपर की और उठी हुई थी साथ ही वो चूत का उठाव इतना शानदार था कि किसी नपुंसक का लन्ड खड़ा हो जाये। नीचे की ओर आयें तो उस उठाव के बीच के हिस्से से शुरू होते हुए दो गुलाबी पत्तियां हल्की सी गोलाई लेते हुए नीचे वापिस मिल चुकी थी, ये गुलाबी पत्तियां मुश्किल से एक इंच की दूरी में थी, मुझे यह अंदाजा तो हो गया था कि इस लड़की को पहली बार दर्द तो बहुत होगा।

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मैंने अपने हाथ से उसकी चूत की दोनों पत्तियों को अलग किया तो दिव्या सीत्कार कर उठी, उसकी चूत का छेद भी बहुत छोटा था। मुझसे रुका नहीं गया और मैंने दोनों फांकों के बीच अपनी जीभ रख दी, दिव्या मारे उत्तेजना के धनुष की तरह तन गयी बीच से। उसकी चूत के छेद की खुशबू इतनी मस्त थी कि दुनिया की सब सुगंध उसके आगे फेल हो जायें।

मैं उसकी चूत को अपनी जीभ से लपर लपर चाटने लगा। बीच बीच में उसके दाने को भी अंगूठे से सहला देता तो उसकी तड़प और बढ़ जाती।
अब उसकी सिसकारियां कराह में बदल गयी थी- ओह … आह … कुछ हो रहा है मुझे, कुछ ही रहा है मुझे!

इसके साथ ही उसके शरीर ने साथ छोड़ दिया और वह स्खलित हो गयी, उसकी साँसें उखड़ रही थी, मैंने उसका रस चाट लिया। अब वह शान्त पड़ चुकी थी, मैंने भी उठ कर अपने कपड़े उतार दिए, साथ ही उसके उसकी ब्रा भी पूरी तरह निकाल दी।

मेरा लन्ड पूरी तरह तन चुका था, यह देखकर दिव्या बोली- यह तो बहुत बड़ा होता है, मैं मर जाऊंगी इससे।
मैंने समझाया- देखो एक बार दर्द होगा, लेकिन अपने प्यार के लिए तुम इतना सहन कर लेना, वरना अपना प्यार अधूरा रह जायेगा।

यह सुनकर दिव्या ने हिम्मत बटोरकर हामी भर दी, मैंने भी उसे अपने ऊपर लिटा लिया, फिर से उसके होंठ चूसने लगा, साथ दोनों हाथ पीछे ले जाकर उसकी गांड को सहलाने लगा। हम दोनों ने फिर से लगभग 5 मिनट लंबा किस किया।

अब मैंने दिव्या को घोड़ी की तरह होने को बोला तो वो बन गयी, अब मैं नीचे लेटकर अपना मुंह इस तरह उसकी जांघों के बीच रखा कि उसकी चूत मेरे मुंह तक पहुंच जाए, फिर उसके पैर चौड़े करके उसकी चूत को अपने मुंह पर टिका लिया और फिर से चपर चपर चूत चाटना शुरू कर दिया।

थोड़ी देर बाद दिव्या की चूत का दबाव मेरे मुंह पर बढ़ने लगा और उसकी सिसकारियां भी बढ़ गयी।

मैंने देर न करते हुए उसे अपने ऊपर से हटाया और उसे लेटा दिया, उसके दोनों पैरों को चौड़ा कर दिया, मैं अपने लन्ड को उसकी चूत पर घिसने लगा, हालांकि मेरे लिए भी रुकना मुश्किल होता जा रहा था.
अब दिव्या अपनी चूत ऊपर उठाने लगी, मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपने लन्ड पर थोड़ा थूक लगा कर चिकना किया और दिव्या के होंठों को अपने होंठों में दबाकर लन्ड उसकी चूत के छेद पर टिका दिया।
मैंने सुपाड़े को थूक से अच्छी तरह से गीला किया और फिर कोशिश की.. लेकिन फिसल गया। फिर मैंने अपना सुपाड़ा चमड़ी से ढक लिया और सही एंगिल बना कर उसे चूत में दबाने लगा। बड़ी कोशिश के बाद लण्ड का अगला सिरा चूत में घुस कर.. कुछ जगह बनाने में सफल हो गया। फिर थोड़ा और जोर लगाया तो सुपाड़ा फोरस्किन से बाहर फिसला और लगभग एक डेड़ उंगल गहराई तक घुस गया।
उसकी चूत की मांसपेशियां खिंची और वो दर्द से तड़प सी गई और मुझे परे धकेलने लगी.. लेकिन मैंने उसे हिलने नहीं दिया.. मैं जानता था कि अब प्यार-मोहब्बत.. दया ममता से काम नहीं चलने वाला.. मुझे ताकत से काम लेना ही था।

मैंने लण्ड को आहिस्ता से थोड़ा और धकेला.. तो वो आगे जाकर किसी अवरोध से रुक गया। मैं समझ गया कि मेरा सुपाड़ा उसकी चूत की झिल्ली पर दस्तक दे रहा था। मैंने लण्ड को धीरे से थोड़ा और आगे की तरफ हाँका.. तभी वो दर्द से तड़पी और मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी। मैंने उसकी कलाइयाँ पकड़ के और ताकत से लण्ड को चूत में दबा दिया।

‘बाहर निकाल लो… मैं आपका पूरा नहीं सह पाऊँगी..’ कहते हुए दिव्या की आँखों में आँसू उमड़ आए थे।’
मैं भी उसकी हालत देख दुखी हो उठा था और पछता रहा था.. लेकिन अब क्या हो सकता था। समय का चक्र पीछे नहीं घुमाया जा सकता.. अब वापस लौटना बेवकूफी ही कहलाएगी।
यही सोच कर मैंने उसके स्तन अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिए..

मैंने जी कड़ा करके अपने लण्ड को जरा सा पीछे खींचा और दांत भींच कर.. पूरी ताकत और बेरहमी से दिव्या की कमसिन कुंवारी चूत में धकेल दिया।

इस बार मेरा काला.. केले जैसा मोटा और टेड़ा लण्ड उसकी सील तोड़ता हुआ गुलाबी चूत में गहराई तक धंस गया दिव्या के मुँह से ह्रदय विदारक चीख निकली और वो छटपटाने लगी..
मैंने लण्ड को थोड़ा सा पीछे लिया और फिर से बलपूर्वक चूत में धकेल दिया.. इस बार मेरी झांटें उसकी झांटों से जा मिलीं और मैं लण्ड को चूत में अच्छी तरह से फिट करके मैं कुछ देर के लिए रुक गया।
दिव्या की चूत मेरे लण्ड को जबरदस्त तरीके से जकड़े हुए थी और उसका कसाव मुझे तरंगित कर रहा था।

साथ ही मैंने महसूस किया कि कोई गुनगुना सा रस मेरे लण्ड को भिगो रहा है.. मैं समझ गया कि दिव्या की चूत से कुंवारेपन का खून बह निकला है।

कुंवारी चूत के खून से लथपथ मेरा लण्ड रक्त स्नान करता हुआ मुझे असीम सुख और हर्ष का अनुभव करा रहा था। दिव्या मेरे नीचे दबी हुई बिलख रही थी और मैं उसके दूध अपनी मुट्ठियों में भर के उसके आँसू चूमते हुए उसे चुप करा रहा था।
‘बस हो गया रानी.. चुप हो जा अब.. तू तो बहुत सुंदर है ना..।’ मैं बोला और उसकी गर्दन चूमने लगा, उसकी कलाइयाँ थाम के दोनों मम्मों को एक-एक करके पीने लगा।
दिव्या कुछ बोल नहीं रही थी.. बस रोये जा रही थी। उधर मेरा लण्ड लट्ठ की तरह उसकी चूत में गड़ा हुआ था।

कुछ देर तक मैं यूं ही लेटा रहा और उसको यहाँ-वहाँ चूमता-दुलारता पुचकारता रहा.. मैं जानता था कि कुछ ही देर में वो नार्मल हो जाएगी।
हुआ भी यही और उसका रोना थम गया। तब मैंने उसके चूचुकों को अपनी चुटकियों में भर लिए और हल्के-हल्के दायें-बायें उमेठने लगा.. जैसे किसी घुण्डीदार नट को चुटकी में पकड़ कर खोलते या कसते हैं।

‘मार डालो आप तो मुझे…’ वो रुआंसी होकर महीन स्वर में बोली।
‘ऐसा नहीं कहते रानी.. मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ..’ मैं बोला और उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ उसके गालों को चूमने लगा।

‘आज देख लिया आपका प्यार… आज आप मुझे चीर-फाड़ के रख दिया.. निर्दयी हो आप..’ वो शिकायत भरे स्वर में बोली।

मुझे उसके इस भोलेपन पर हंसी भी आई और प्यार भी.. मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप उसके ऊपर लेटा हुआ उसकी नई-नवेली चूत की जकड़न का आनन्द लेता रहा।

कुछ देर बाद मुझे लगा कि अब चुदाई शुरू करना चाहिए।
मैं उसके ऊपर से उठा और धक्का मारने को लण्ड को थोड़ा पीछे खींचना चाहा तो साथ में चूत भी खिंचती चली आई.. जैसे लण्ड से जुड़ी हुई हो..
फिर मैंने लण्ड को एकदम से बाहर खींच लिया।

चूत से ‘पक्क’ की आवाज सी निकली.. जैसे बियर की बोतल का ढक्कन खुला हो.. खून से सना हुआ मेरा लण्ड हवा में लहरा गया। मेरी झांटें तक खून से सन गई थीं। उधर चूत से भी खून रिस रहा था। मैंने सुपारे को फिर से मुहाने पर सैट किया और भीतर की तरफ ताकत से ठेल दिया।लो फिर से दर्द से कसमसाई.. लेकिन उसने इस बार हिम्मत से काम लिया और पूरा लण्ड झेल गई।

करीब एक मिनट रुकने के बाद मैंने धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करना शुरू किया.. जल्दी ही उसकी चूत की पकड़ कुछ ढीली हुई और मैं उसे तबियत से चोदने लगा।

कुछ ही देर में वो मुँह से आनन्द भरी कराहें निकालने लगीं और वो अपनी एड़ियाँ रगड़-रगड़ कर नितम्ब उठा-उठा कर मुझसे लिपटने लगी, वो मुझे अपनी बाहों में भरने लगी।
फिर मैंने उसकी चूत के दाने को अपनी झांटों से घिस-घिस कर चोदना शुरू किया.. तो उसके मुँह से कामुक किलकारियाँ आने लगीं और उसने उत्तेजना में भरकर मेरे कंधे में अपने दांत गड़ा दिए और मेरे धक्कों के साथ ताल में ताल मिलाती हुई चुदने लगी।

‘ कुछ हो रहा है.. देखो रूम हिल रहा है.. ये बेड़ भी हिल रहा है.. मुझे पकड़ लो आप..’ वो थरथराती कामुक आवाज में बोली और अपनी चूत मुझसे कसके सटा दी और अपनी टाँगें मेरी कमर में लपेट कर.. मुझे अपनी भुजाओं में पूरी ताकत से भींच लिया।
मैं समझ गया कि वो झड़ रही थी।

मैं भी अपने चरम पर पहुँच रहा था.. सो मैंने जल्दी-जल्दी शॉट मारना शुरू किए.. चूंकि उसने अपनी टाँगें मेरी कमर में लॉक कर रखी थीं.. अतः लण्ड ठीक से अन्दर-बाहर नहीं हो पा रहा था और मेरे धक्कों के साथ वो भी चिपकी हुई उठ गिर रही थी।

जल्दी ही मेरे लण्ड से वीर्य की पिचकारियाँ चूत पड़ीं और उसकी चूत में भरने लगीं।
मैं उसके ऊपर निढाल सा लेट गया और गहरी-गहरी साँसें लेने लगा।

उधर दिव्या मेरी पीठ को प्यार से सहला रही थी और उसकी चूत मेरे लण्ड से लिपटी हुई स्वतः ही खुल-बंद हो रही थी। उसकी मांसपेशियां संकुचित हो-हो कर मेरे लण्ड से वीर्य की एक-एक बूँद निचोड़ने लगीं।
कुछ देर बाद ही मेरा लण्ड सिकुड़ गया और उसे चूत ने बाहर निकाल दिया और अपने पट बंद कर लिए।

तभी दिव्या ने मुझे चूम लिया और बोली- कर ली ना अपने मन की.. अब सोने दो मुझे.. बहुत देर हो गई..

रात के तीन बजे थे.

हम दोनों की सांसों को कण्ट्रोल होने में लगभग 4-5 मिनट लग गए। लेकिन आज जैसी संतुष्टि मुझे कभी नहीं मिली थी। आँखें खोल कर देखा तो सारी बेडशीट बीच से लाल हो गई थी। लोग तो कहते हैं कि थोड़ा सा खून निकलता है लेकिम यह तो बहुत ज्यादा था।