मेरे चारों बच्चे मेरी जान-10

“माँ, तुझे अच्छा लगा?”, अखिल ने बड़े ही प्यार से पूछा।

“हाँ मेरा बेटु, मुझे बहुत अच्छा लगा।” मैंने उसे चूमते हुए जवाब दिया।

“मैं तुझे ऐसे ही खुश रखूँगा माँ, मैं और भैया तुझे ऐसे ही प्यार करेंगे।” और फिर हम चूमने लगे।

उसका लंड फिर से खड़ा होने लगा। अपने लौड़े की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा, “माँ, मैं तेरी गांड भी चोदना चाहता हूँ।”

ये सुन कर तो मेरी हालत ही ख़राब हो गयी, “आज रहने दे बेटा। तेरा ये नाग मैं आज अपनी गांड में नहीं ले पाउंगी। तू दोबारा मेरी चूत ही चोद दे।”

वो सीधे लेट गया। उसका लौड़ा बिल्कुल किसी खम्भे जैसा सीधा खड़ा हो गया, “आजा माँ, बैठ जा मेरे लौड़े पे।” इस अंदाज़ में मैं कभी नहीं चुदी थी। उसने मेरी कमर को पकड़ कर उठाया, और अपने लौड़े को चूत में सेट करके मुझे अपने लौड़े पे बैठा दिया। और मेरी गांड पे एक ज़ोर का थप्पड़ मारते हुए कहा, “अब मेरे लौड़े पर उछल, माँ।”

ये कहते ही उसने मेरी गांड को नीचे से पकड़ कर ज़रा ऊपर की तरफ धक्का दिया और मैं उछलने लगी। उफ्फ्फ, ये क्या खूबसूरत आसान था। इसमें अखिल का लौड़ा सीधे मेरे बच्चेदानी से जाकर टकरा रहा था। इस आसान में बिलकुल साफ़ महसूस हो रहा था कि लौड़ा शरीर के अंदर लेने से कैसा महसूस होता है।

मैं जैसे-जैसे उछल रही थी, मेरे दुदू भी वैसे ही उछल रहे थे। जब मैं थक जाती तो अखिल अपनी कमर उठा-उठा कर मुझे नीचे से धक्के मारता। बीच-बीच में रुक कर वो अपनी गर्दन उठा कर मेरे दुदू को चूमता, और मैं फिर उछलने लगती। ऐसे ही चोदते हुए वो फिर मेरे ही अंदर झड़ गया, और मैं निढाल होकर उसके ऊपर गिर पड़ी और उसने मुझे वैसे ही जकड़ लिया, और हम दोनों गहरी नींद में सो गए।

सुबह 6 बजे के आस-पास उठी तो कमरे के अंदर काफी सुन्दर धूप की रौशनी आ रही थी। मैं अखिल के ऊपर से उठ कर पास में लेट गयी, और उसके गठीले बदन को निहारने लगी। कल ही मेरा बेटु 18 का हो गया। कितनी जल्दी-जल्दी बच्चे बड़े और जवान होते जा रहे है।

अभी उसे सोता देख मुझमें माँ की ममता जाग रही थी। इतना सुन्दर बदन, ये मॉडलिंग वगैरह की दुनिया में भी जा सकता है। मुझे मन कर रहा था उसे गले लगा कर चूमूं जैसे उसे बचपन में चूमती थी। अखिल जब पैदा हुआ था, बिलकुल गोल मटोल, एकदम गुड्डे जैसा था। पर जवान होते-होते बिलकुल हीरो सा हो गया।

उसे निहारते-निहारते मेरी नज़र उसके काले नाग पर पड़ी। उफ़, धूप की रौशनी पड़ने के कारण बिल्कुल चमक रहा था उसका लौड़ा। और बस माँ की ममता गायब हो गयी और एक औरत की वासना जाग गयी।

मैं ललचा गयी और सीधा उसके लौड़े को पकड़ कर चूमने लगी। कुछ देर में शायद अखिल को आहट हुयी और वो जागते ही पूछा, “माँ, मुझे जागने तो दो। आप तो पहली ही शुरू हो गयी” और बोल कर हंस पड़ा।

मैं उसकी बातों को अनसुना करते हुए उसके बड़े से लौड़े को चूस रही थी। इतने में उसने अपने पैरो को फैला कर बीच में जगह बना दी। मैं बीच में आकर अपने घुटनों पर उकडू होकर बैठ गयी, और उसके लौड़े को जीभ लपेट लपेट कर चूसने लगी। थोड़ी देर बाद अखिल मेरे सर को पकड़ कर नीचे दबाता और मैं सांस लेने के लिए ऊपर उठने की कोशिश करती।

वो अब मेरे मुँह को चोद रहा था और मुझे सांस लेने में तकलीफ होती। जब मेरा चेहरा लाल हो जाता, तब वो मेरे सर को छोड़ता। फिर कुछ सेकंड बाद फिर से वही प्रक्रिया में मेरे मुँह की चुदाई करता। ऐसा करते हुए कुछ पांच-दस मिनट बाद वो मेरे मुँह में ही झड़ गया। अभी मैंने पहली बार उसका वीर्य अपने मुंह में लिया था, एक खट्टा सा स्वाद आया उसके वीर्य से।

फिर मैं उसके बगल में लेट कर सांसें लेने लगी। और वो मुझे जकड़ कर मेरे माथे को सहलाने लगा।

कुछ देर बाद, मैंने पूछ लिया, “बेटु, सच-सच बता, पहले किसी के साथ की है ना तूने चुदाई?”

वो मुस्कुराते हुए बताने लगा, “नहीं माँ, बस चुदाई ही नहीं की है, बाकी सब कर लिया है।”

मैंने जानकारी लेने के लिए झूठा गुस्सा दिखाते हुए पूछा, “किसके साथ?”

तो वो और हंस पड़ा, “स्वाति के साथ माँ,और किसके साथ।”

स्वाति अखिल की गर्लफ्रेंड का नाम है। स्वाति मुझे बहुत पसंद है। बहुत ही अच्छे स्वाभाव की लड़की है। बहुत ही अच्छे परिवार की लड़की है, और पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज़ भी है। बेहद खूबसूरत भी है, या आज-कल इन बच्चों के भाषा में कहे तो बेहद सेक्सी और हॉट है। जब मैं उसे पहली बार मिली थी, मैंने सोच लिया था इसे अपने घर की बहु बनाउंगी।

खैर, मैंने अखिल को कहा कि वो बाकी सब के उठने से पहले जल्दी से अपने कमरे में चला जाए, और नहा-धो ले। नीचे मिलते हैं नाश्ते पे। मैं थोड़ी देर और सो गयी, और फिर उठ कर अपने कमरे की साफ़-सफाई करके, नाहा-धो कर, फ्रेश हो कर, नीचे आ गयी नाश्ता करने।

मेरे बाकी दोनों जिगर के टुकड़े आकर मुझसे लिपट कर बातें करने लगे, पर मेरी नज़र मेरे दोनों शेरों को ढूंढ रही थी। मैंने आरती और अभिनव से पूछा कि दोनों भैया कहाँ गए थे, तो उन्होंने बताया कि एक साथ कहीं टहलने गए थे।

मैं ज़रा चिंता में पड़ गयी, क्यूंकि कल रात से ना मैंने अभिषेक को देखा और ना कुछ बात हुयी। मैं थोड़ी बहुत घबराई हुयी थी, कि क्या बात हो रही होगी दोनों भाइयो के बीच, और किसी बात पे लड़ाई ना हो जाए, कोई बहस ना हो जाए, कहीं मेरी वजह से मेरे बच्चों के बीच दूरियां ना पैदा हो जाए।

जब मन में नकारात्मक ख्याल आने शुरू होते हैं, तो फिर रुकते ही नहीं। मैंने दोनों के मोबाइल पे फ़ोन करने की कोशिश की, पर दोनों अपने फ़ोन यहीं रख कर गए थे। मेरी घबराहट और बढ़ सी गयी।

आज सबका अपने-अपने हिसाब से घूमने का प्लान था, कोई बीच गया था, कोई किसी मंदिर, कुछ लोग गिरजा घर वगैरह गए थे घूमने। विला पर फिलहाल मेरे और बाकी दोनों बच्चों के अलावा सिर्फ एक विला का केयरटेकर था। मैंने नौकरानियों को भी घूमने भेज दिया था।

मैं गेट के पास ही जाकर बैठ गयी। कुछ देर बाद मैंने देखा दूर से ही दोनों भाई टहलते हुए आ रहे थे, उनके हाव-भाव से लग रहा था जैसे दो दोस्त गप्पे लड़ाते हुए आ रहे थे। उनके पास पहुँचते ही मेरे मन को ठंडक पहुंची क्यूंकि दोनों हंसी मज़ाक करते हुए आ रहे थे।

मुझे बाहर बैठा देख अभिषेक पूछने लगा, “माँ, आप बहार क्यों बैठी हो?”

मैं हँसते हुए उन्हें कहने लगी, “तुम दोनों शैतानों का ही इंतज़ार कर रही थी।”

इतने में अखिल पूछने लगा, “बाकी लोग?”

“वो तो अपना घूमने निकल गए”, मैंने उन्हें बाहर की तरफ इशारा करते हुए कहा। “चलो, हम भी चलते हैं आज किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लंच करेंगे।”

फिर हम पाँचो निकल पड़े। आज के लिए हमने अपने एजेंट से एक गाड़ी किराए पर ले ली,  और गोवा के एक मशहूर रेस्टोरेंट में चले गए। बेहद खूबसूरत सा रेस्टोरेंट था। हमारी गोअन स्टाइल में स्वागत हुआ। हमारे टेबल की एक तरफ काफी बड़ा स्विमिंग पूल और दूसरी तरफ समुद्र था। बहुत खूबसूरत था।

वहां हमने 7-कोर्स भोजन बुक किया था जो बहुत ही मशहूर है। स्विमिंग पूल में कई खूबसूरत लड़कियां बिकिनी पहने खेल रही थी, वहाँ एक ग्रुप गोअन गाने गा कर नाच रहे थे। बहुत अच्छा माहौल था। मेरे चारों बच्चे और मैं खूब एन्जॉय कर रहे थे। मेरे चारों जान के टुकड़ो को हँसता खेलता देख, एक-दूसरे के लिए जान न्योछावर करता देख मुझे मेरे आलोक जी की याद आ गयी।

आलोक जी आज हम सब के साथ होते, मेरे पास होते, तो अपने चारों बच्चों को ऐसा देख कितने खुश होते। वो जहाँ कहीं भी हो, हम सब को देख बहुत खुश होंगे। उनका आशीर्वाद हमारे साथ रहेगा।

यही देखते और सोचते हुए मैं ख़ुशी से भावुक हो गयी, और मेरी आँखों की नमी अभिषेक ने देख ली। उसने बस अपने आँखों से कह दिया, “हम सब आपके पास हैं, माँ।” और एक प्यारी सी मुस्कान दे दी। मेरे चारों बच्चे मेरे जान के टुकड़े हैं पर अभिषेक आलोक जी का ही रूप था।

वहाँ पे लंच करने के बाद हम सब आस-पास कुछ प्रॉपर्टी देखने चले गए। व्यवसाय को बढ़ाने के लिए छुट्टी में भी थोड़ा बहुत काम कर लेना चाहिए। कुछ दुकानें देखी जहाँ अपना शोरूम खोल सकते हैं। गोवा के कपड़ो के बाज़ार को भांपने की कोशिश की हमने। एक दो विला भी देखने चले गए, जो बिकने के लिए थे।

थके हारे, नारियल का पानी पीकर, हम वापस अपने विला आ गए। बाकी सब भी धीरे-धीरे आते जा रहे थे। रात का डिनर विला पे ही था। कुछ ने खाया, कुछ बाहर खाकर आये थे, और सब थके हारे अपने कमरों में चले गए। हम भी डिनर करके अपने-अपने कमरे में जाने लगे, तो मेरी गुड़िया, मेरी छोटी, आरती आकर मुझे हमेशा की तरह गालों पर चूमने आयी।

मैंने अभिनव को भी इशारा किया, कि मुझे गालों पे चुम्बन दे (अभिनव सबसे छोटा है और सबसे ज़्यादा शर्मीला भी)। अब मेरे दोनों शेर भी वहीँ खड़े थे। उन्हें भी मैंने इशारा किया तो पहले अखिल आया, मेरे गालों को चूमते हुए मेरे कानों में फुसफुसाया, “आज रात आपके लिए सरप्राइज है, माँ।”

मेरी आँखें बड़ी हो गयी, उतने में अभिषेक आकर मेरे गालों को चूमते हुए मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, “प्लीज ब्लैक वाली पहनना”। और फिर वो दोनों अपने-अपने कमरों की और जाने लगे। वो जब जा रहे थे, तो मैंने थोड़ी ऊँची आवाज़ में आरती और अभिनव की तरफ देखते हुए कहा, “चलो, थोड़ी देर में तुम लोगों के साथ सोती हूँ।” मैंने इसलिए ऊँची आवाज़ में कहा, ताकि अभिषेक और अखिल सुन ले और उसी हिसाब से समय का ध्यान रखे।

मुझे पता था कि आज पूरी रात कुछ होने वाला था, तो थोड़ी देर मेरे दोनों प्यारे छोटों को भी मेरा वक़्त मिल जाए। मैंने नौकरानी को कह दिया, कि ऊपर सबके कमरे में पानी वगैरह रख दे, जो भी चीज़ें रात में ज़रूरत होती है, सब हमारे कमरों में रख कर सोने जाए।

मैं अभिनव और आरती के कमरे में जाकर उनसे बाते करने लगी। बच्चों की अलग ही दुनिया होती है, कहानियों की। बातें करते-करते दोनों सो गए। उन्हें सुला कर मैं अपने कमरे में आ गयी।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों।